धनबाद:16 सितम्बर को झारखण्ड प्रदेश आदिवासी कुडमि मंच के बैनर तले 20 सितम्बर को रेल टेका डहर छेका कार्यक्रम को ऐतिहासिक रूप से सफल बनाने के लिए धनबाद जिला परिषद मैदान से रणधीर वर्मा चौक तक कुडमि जनजाति जन चेतना मशाल जुलूस सैकड़ों की संख्या में लोग हाथों में मशाल, एवं झंडा लेकर जिला मुख्यालय चौक का परिक्रमा कर रेल रोको बंदी को सफल बनाने का मंच द्बारा आह्वान किया गया। इस कार्यक्रम का नेतृत्व मंच के संयोजक मंटू महतो ने किया। सभी सम्बोधित करते हुए मंटू महतो जी ने कहा कि प्रदेश के जनजाति समुदाय को आदिवासी राज्य कैसे बने इस बिषय में गम्भीरता से सोचना विचारना चाहिए।न की राज्य के इतनी बड़ी भुभाग में बसे एकल एक बड़ी आबादी वाले आदिवासी कुडमि जनजाति समाज को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल होने का विरोध करना चाहिए। हम सभी आदिवासी जनजाति समुदाय को कानूनी पहलुओं पर विचार बिचार करना चाहिए कि किस विधि से झारखण्ड अलग राज्य निर्माण के मुल उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह राज्य आदिवासी राज्य बने। हमारी लडाई झारखण्ड के खनिज सम्दाओं की सुरक्षा, यहां की जल जंगल जमीन की सुरक्षा,शोषित पीड़ित उपेक्षित समाज का कानूनी संरक्षण,रोजी रोजगार की सुरक्षा, भाषा संस्कृति की सुरक्षा, हमारी परिचय और पहचान की सुरक्षा यही हमारी राजनीतिक और सामाजिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।प्ररन्तु आज भी शातीर,चालाक, पूंजीपति,शाषक और शोषक वर्ग यहां दलाल पैदा कर भाई भाई को लड़ाकर इस राज्य को आदिवासी राज्य बनाने की शहीदों के सपनों को चकनाचूर करना चाहते हैं। मुट्ठी भर क्रिश्चियन धर्मावलंबी लोग जो आदिवासियत को खोकर तथाकथित आदिवासी जनजाति बनकर पुरे प्रदेश के जनजाति लाभों पर कुंडली मार कर बैठा है और आरक्षण, एवं जनजातिय संवैधानिक लाभ ले रहे है उसको या वैसे लोगों का तिलिस्म खत्म हो जाने का डर सताने लगा है इस लिए कुडमि जनजाति को अनुसूचित जनजाति में सूचिबद्ध होने या करने की सरकार से अपनी संवैधानिक तरीके से हमारी संवैधानिक मांगों का विरोध कर रहा है। चूंकि वो इस बात को खुब अच्छी तरह जानता या समझता है कि आज नहीं तो सरकार कुडमि जनजाति समाज को ST सूची में सूचिबद्ध करना ही पड़ेगा। इससे झारखण्ड मजबूत होगा।और स्थाई रूप से झारखण्डी नेतृत्व द्बारा झारखण्ड का विकास होगा।पुरे प्रदेश में जनजातीय संवैधानिक संरक्षण बढ़ेगा।उपनिवेशिक शासन करने वाले सोच का अंत हो जाऐगा और इसी के साथ पुरे झारखण्ड में लुट और शोषण का अंत हो जाएगा। श्री महतो ने आगे कहा कि वर्तमान में झारखण्ड पांचवीं अनुसूची का राज्य जरूर है लेकिन 13 जिला ही अधिसूचित किया गया है यानी तेरह जिला ही अधिसूचित है। और बाकी का 11 (ग्यारह) जिला समान्य श्रेणी में है।इन जिलों में कुडमि जनजाति सहित सूचिबद्ध जनजाति समुदाय को भी पांचवीं अनुसूची का लाभ, पेशा कानून आदि का लाभ नहीं मिल रहा है यानी नहीं मिलेगा। झारखण्ड के इतनी बड़ी कुडमि जनजाति का एकल आबादी और इतनी बड़ी भू-भाग में खनिज संपदा जल,जंगल, नदी नाला पहाड़ पत्थर बालू क्षेत्र में बसे राढ सभ्यता है जिस लुरेरा शासकों शोषकों द्बारा संवैधानिक संरक्षण के अभाव में शोषण दोहन लुट खसोट बदस्तूर जारी है। इसीलिए कुडमि जनजाति समाज आरक्षण के लिए नहीं बल्कि संरक्षण के लिए ST सूची में सूचिबद्ध होने के खातिर संघर्षरत है। आरक्षण के लिए तो क्रिश्चियन धर्मावलंबी,चाहे धर्मांतरित तथा- कथित फर्जी आदिवासी का ढोंग रच कर कुडमि जनजाति सहित, अधिसूचित या सूचीबद्ध जनजाति समुदाय का आरक्षण सहित तमाम हक अधिकार पर डाका डाल रहा है। यानी दोहरी फायदा ले रहा है। वैसे सभी लोग पूंजीपतियों, शोषकों, शासकों का दलाली कर रहा है।वे लोग अंग्रेज काल से दोहरी जीवन परिचय बनाऐ हुऐ हैं। एक तरफ अंग्रेजों, पादरियों, (क्रिश्चियन मिशनरीयों) से मिलकर धर्म परिवर्तन कर बड़े ही आसानी से उसका तमाम लाभ या फायदा को जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य आदि । अभी तक लेते आ रहे हैं और दूसरी तरफ जनजाति सूची में सूचिबद्ध होने का फायदा के रूप में आरक्षण का कोटा तो पांचवीं अनुसूची, तो पेशा कानून आदि लाभ भी ले रहे हैं और अभी वर्तमान में सूचीबद्ध शोषित पीड़ित उपेक्षित जनजाति समुदाय को गुमराह कर महतो मांझी भाई भाई के रिस्ता (सम्बन्ध) में दरार डाल कर लडाना चाह रहा है। ताकि झारखण्ड कभी भी पूर्ण रूप से पांचवीं या छट्ठी अनूसूची का राज्य नहीं बन सके ।और ये लोग इसी तरह इस राज्य एवं राज्य के मूल आदिवासियों महतो -मांझी के हक अधिकार को लुटते,छीनते, खाते रहे और शासक शोषक और पूंजीपति वर्ग इस राज्य में लुट खसोट,शोषण दोहन करते हैं। सोचने एवं गम्भीर विचारणीय बात,विषय यह भी है कि आखिर आज तक इन अनूसूचित जनजातियों का विधायक, सांसद आई ०एस ,आइ०पी०एस, बी०पी०एस,जे०पी०एस,क्यो नही बना?:-असुर,बैंगा, बंजारा,बाथुडि, बेदिया,बिंझिया,बिरहोर, बिरजिया,चेरो,चिक,बड़ाइक,गोडाईत,गोंड,कोंवार, करमाली, खारिया,खरवार,खोन्द,किसान,कोल,कोरवा,लोहरा,मालपहाडिआ, सौरिया पहाड़ियां, पहाड़ियां,सवर आदि।75 सालों से इसका हक कौन का रहा है भाई?इस लिए दोहरी परिचय दोहरी लाभ लेने वाले तथाकथित आदिवासी जनजाति कहने वाले या मानने वाले क्रिश्चियन धर्मावलंबी (मिशनरी, धर्मांतरित) से सावधान रहने की जरूरत है। उसके भड़काऊ भाषणों और बातें में न फंसना और न ही हमलोगों को उलझना है। हमारी लडाई, हमारी मांगे सरकार एवं संविधान से है। संक्षिप्त में हमारा पक्ष——————–1) आदिवासी के रूप में चिह्नित कुडमि जनजाति को 1865और1925 के भारतीय उत्तराधिकारी अधिनियम एवं हिन्दू विवाह अधिनियम से कुडमि जनजाति सहित अन्य 12 जनजाति समूह को ब्रिटिश सरकार द्बारा अपनी गेजट में अन्य जातियों से अलग रखा।2) ब्रिटिश शासन काल के अंग्रेज अधिकारी मेजर रफसेज के रिपोर्ट कुडमि समूह को आदिवासी/जनजाति के रूप में चिह्नित किया।3) प्रख्यात मानव विज्ञानशास्त्री डॉ ०एच०एच० रिजले द्बारा अनुसंधानिक रिपोर्ट में कुडमि जनजाति को आदिवासी नस्लीय जनजाति के रूप में चिह्नित किया गया।4)मानव विज्ञानशास्त्री डॉ ०एच०एच० रिजले द्बारा अपनी अनुसंधानिक रिपोर्ट में बृहद झारखण्ड के कुडमि/कुरमि एवं बिहार सहित अन्य राज्यों के कुर्मी/कुर्मी को अलग अलग नस्लीय भेद भाव कर बृहद झारखण्ड के कुडमि जनजाति को एक नस्लीय (टोटेमिक) नस्लीय बताया गया है और बिहार सहित अन्य प्रदेशों के कुर्मी/कुर्मी को हिन्दू संस्कार आधारित जाति बताया गया है।5)सन् 1913और 1931 के गेजट में कुडमि जनजाति समूह को अन्य 12 जनजाति समुह के साथ शामिल किया गया।(कुल 13 आदिवासी जनजाति समूह)6) पटना एवं कोलकात्ता हाईकोर्ट के /में भूमि एवं उत्तराधिकारी अधिकारी सम्बंधित मामलों/मुकदमों में आदिवासी/जनजाति घोषित कर फैसला कुडमि जनजाति के पक्ष में हुआ है।7) आजादी के बाद शोधकर्ताओं द्बारा शोध के दरमियान कुडमि कुडमि जनजाति समूह के DNA जांच में 65000 वर्ष (पैंसठ हज़ार वर्ष) पुरानी आदिवासी/जनजातीय नस्ल का बताया गया है।8)सन् 1965 में बनी लुकर कमिटी (बी०एन०लुकूर, तत्कालीन भारत सरकार के कानून सचिव)की सभी अहर्ताओं/मापदण्डों को कुडमि जनजाति पुरी करती है।9) उच्चतम न्यायालय के एक फैसले /सुनवाई में सन् 1950 के पूर्व अगर किसी भी जाति या जनजाति समूह/समुदाय के पास आदिवासी, जनजाति होने की साक्ष्य, किसी प्रकार का दस्तावेज,या प्रमाण है तो उस S.T का दर्जा मिलना चाहिए।10) सन् 1989। में तत्कालीन राजीव गांधी केन्द्र सरकार द्बारा अलग राज्य निर्माण हेतु झारखण्ड अलग राज्य विषयक समिति द्बारा कुडमि जनजाति को अनुसूचित जनजाति घोषित किया गया है।11) अन्य की विद्वानों, राजनेताओं के मन्तब्य,राय विचार, एवं मानना है कि कुडमि जनजाति अपनी रूढ़ी प्रथाओं, भाषा संस्कृति,रहन सहन आदि से जन्मजात आदिवासी /जनजाति नस्लीय है। अब हम सभी कुडमि जनजाति समाज का सवाल बनता है कि फिर क्यों किस कारण से हमें तत्कालीन भारत सरकार बीना कारण/अकारण किस आधार पर सन् 1950 में ब्रिटिश सरकार द्बारा सूचीबद्ध 13 आदिवासी/जनजाति समूह/सूची से 12 को शामिल कर सिर्फ एक मात्र कुडमि जनजाति को ही संविधान की अनुच्छेद 342 यानि S.T सूची शामिल नहीं कर उससे अलग/बाहर किया गया? या बाहर रखा गया? आखिर क्यों? अब उसके बाद, बाद कि सरकारें भी उस भुल को क्यों सुधार करना चाहती है? जब कि सन् 1950के बाद अन्य कई आदिवासी/जनजाति समूह को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल किया गया है? कहीं वर्तमान सरकार भी कुडमि जनजाति समुदाय के प्रति उसी (नेहरू सरकार)सरकार की मानसिकता से ग्रहित तो नहीं है?आज के कार्यक्रम में हलधर महतो, चौधरी चरण महतो रतिलाल, महतों विसाल महतों रिंकू महतो उर्फ रिंकू महतो,प्रदीप महतो, संतोष महतो (मुखिया)राजू महतो, बिरजू मुखिया,संजय मुखिया,साधन महतो,नरेश महतो,शेखर महतो,सदानन्द महतो, बिंध्देश्वर महतो,सरजू महतो,मनोहर महतो,प्रेम किंग महतो, अरूण महतो, रामचंद्र महतो ,दिनेश महतो, दयानंद महतो,सुनील महतो अजय सिन्हा, राधेश्याम महतो,विशाल महतो, सचिन महतो,रवि महतो रतिलाल महतो, सुभाष महतो, गणेश महतो, सुरेश महतो,उमेश महतो, संजय महतो,मनोज महतो आदि सैकड़ों जन शामिल थे।