सायबर अपराधों में तेजी से बढ़ोतरी को देखते हुए पुलिस लाइन सभागार में एक महत्वपूर्ण साइबर सुरक्षा एवं मिशन शक्ति जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसे उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने वर्चुअली संबोधित किया। अपने संदेश में उन्होंने कहा कि कोविड के बाद डिजिटल निर्भरता, सस्ते डेटा और सोशल मीडिया–ऑनलाइन गेमिंग की लत ने साइबर क्राइम को अभूतपूर्व रूप से बढ़ाया है। उन्होंने बताया कि साइबर ठगी के चार प्रमुख कारण—लोभ, लापरवाही, लत और मनोवैज्ञानिक भय (डिजिटल अरेस्ट)—हैं, जिनसे सावधान रहना अत्यंत आवश्यक है।DGP ने जनता से अपील की कि साइबर अपराध की स्थिति में ‘गोल्डन आवर’ में 1930 पर तुरंत कॉल करें, जिससे सही ट्रांजेक्शन आईडी मिलते ही रकम को फ्रीज कर पीड़ित को बचाया जा सके। उन्होंने बताया कि पिछले तीन महीनों में उत्तर प्रदेश पुलिस ने इसी प्रक्रिया के तहत 130 करोड़ रुपये बचाए हैं। उन्होंने यह भी बताया कि प्रदेश के सभी 75 जिलों में साइबर थाने और 1576 थानों पर साइबर हेल्प डेस्क सक्रिय हैं।कार्यशाला में पुलिस आयुक्त मोहित अग्रवाल ने वाराणसी कमिश्नरेट की उपलब्धियों को साझा करते हुए बताया कि साइबर अपराधियों के खिलाफ अभियान के तहत 5 फर्जी कॉल सेंटरों पर कार्रवाई कर 75 अपराधियों को जेल भेजा गया, 1400 संदिग्ध मोबाइल नंबर ब्लॉक कराए गए और साइबर धोखाधड़ी के पीड़ितों को 7.5 करोड़ रुपये वापस दिलाए गए। उन्होंने बताया कि कमिश्नरेट में अब तक 600 से अधिक साइबर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं और 50,000 साइबर ज्ञान पुस्तिकाएँ नागरिकों में वितरित की गई हैं।साइबर विशेषज्ञ डॉ. रक्षित टंडन ने कार्यशाला में डिजिटल अरेस्ट, ऑनलाइन फ्रॉड, डेटा चोरी, सोशल इंजीनियरिंग, पासवर्ड सुरक्षा, वित्तीय लेन-देन सुरक्षा, संदिग्ध लिंक की जांच, मोबाइल ऐप सुरक्षा और मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन जैसे विषयों पर सरल और व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया। उन्होंने छात्रों से अपील की कि वे अपना निजी डेटा कभी साझा न करें, क्योंकि “डिजिटल फुटप्रिंट कभी डिलीट नहीं होता।”कार्यक्रम में पुलिस अधिकारियों, शिक्षकों, छात्रों, मीडिया कर्मियों और बड़ी संख्या में नागरिक उपस्थित रहे।