
आज सुबह पुरी की हवा में एक अलग ही स्पंदन है. बंगाल की खाड़ी से आती नमकीन हवा अगरबत्तियों, फूलों और कपूर की महक में घुल गई है. शंख, घंटे और घड़ियाल की ध्वनि के साथ लाखों कंठों से निकला “जय जगन्नाथ” का जयघोष एक ऐसी आध्यात्मिक ऊर्जा पैदा कर रहा है जो तन-मन को झकझोर देती है.पुरी का प्रसिद्ध ‘बड़ा दांड’ (Grand Road) आस्था के एक विशाल महासागर में बदल चुका है. यह केवल एक सड़क नहीं, बल्कि एक जीवंत तीर्थ बन गया है, जहां हर कोई उस एक पल का इंतजार कर रहा है जब जगत के स्वामी, महाप्रभु जगन्नाथ, अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपने मंदिर की सीमाओं को लांघकर अपने भक्तों से मिलने के लिए बाहर आएंगे.यह कोई साधारण यात्रा नहीं है. यह एक ऐसा पर्व है जो ईश्वर और इंसान के बीच की हर दूरी को मिटा देता है. यहां भगवान राजा नहीं, बल्कि एक प्रेमी पिता, भाई और मित्र की तरह अपने लोगों के बीच आते हैं. मंदिर की चारदीवारी, नियम और अनुष्ठानों के बंधन टूट जाते हैं और देवता स्वयं अपने भक्तों के द्वार पर पहुंचते हैं. यह एक ऐसा अनूठा उत्सव है जहां भगवान को देखने के लिए तीर्थयात्रा नहीं करनी पड़ती, बल्कि भगवान स्वयं यात्रा पर निकलते हैं. यह आध्यात्मिक लोकतंत्र का सबसे बड़ा उत्सव है, जहां भगवान केवल मंदिर के गर्भगृह तक सीमित नहीं रहते, बल्कि हर उस व्यक्ति के हो जाते हैं जो उन्हें प्रेम से पुकारता है. आज सुबह 6 बजे मंगला आरती के साथ दिन की शुरुआत हुई और अब जैसे-जैसे घड़ी की सुइयां आगे बढ़ रही हैं, लाखों धड़कनें उस क्षण की प्रतीक्षा में तेज हो रही हैं जब महाप्रभु अपनी पहली झलक देंगे.