धनबाद : हीरापुर के हरि मंदिर में विजयादशमी के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा को कंधे पर रखकर यादव समाज (ग्वाला) द्वारा नगर भ्रमण कराने और विसर्जन करने की पुरानी और अनूठी परंपरा है, जिसकी शुरुआत 1933 में हुई थी। यह परंपरा हरि मंदिर को विशेष बनाती है, जहाँ यादव समाज के लोग अपनी कंधे में ‘मां दुर्गा’ को लोहे के पाइप का मचान बनाकर मां को विराज कर विसर्जन के लिए नगर भ्रमण करते हुए पंपु तलाव में विसर्जन करती है ।पारिवारिक स्नेह का प्रतीक: यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि भक्तों के लिए मां दुर्गा के प्रति गहरी श्रद्धा और पारिवारिक स्नेह का प्रतीक है, जैसे वे अपने घर की बेटी या माँ को विदा कर रहे हों।समिति के सदस्य सुदीप विश्वास ने बताया अन्य जगहों पर जहां प्रतिमा सीधे विसर्जन स्थल ले जाई जाती है, लेकिन हरि मंदिर में प्रतिमा को नगर भ्रमण करते हुए विसर्जित किया जाता है जिसे देखने के लिए लाखों भक्त आते है। मां मंदिर से निकलकरज्ञान मुखर्जी रोड, अजंता पड़ा, भिस्ती पड़ा, लिंडसे क्लब रोड,कोर्ट कार्टर रोड, डी एस कॉलोनी होते हुए पंप तलाव में विसर्जन किया जाता है । ज्ञान मुखर्जी रोड निवासी झीलिक बागती बताती है जिस जिस मार्ग से दुर्गा मां की प्रतिमा गुजरती है उस मार्ग पर भक्तों का भीड़ सड़क किनारे मां की विदाई देखने के लिए इंतजार करती है । मैं भी उसी तरह से इंतजार कर रही हूं मां के विदाई देखने के लिए यह विदाई अनोखा इसलिए होता है क्योंकि यादव समाज के लोग कंधे में लेकर “जय दुर्गे जय दुर्गे” नारे के साथ विसर्जित करने जाते हैं।