कोलकाता और बंगाल के अन्य हिस्सों में विजयादशमी के दिन दुर्गा पूजा का समापन एक विशेष परंपरा सिंदूर खेला से होता है। यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है और इसमें विवाहित महिलाएँ माँ दुर्गा को सिंदूर अर्पित करने के बाद एक-दूसरे को भी सिंदूर लगाती हैं। पर अब यह संस्कृति बंगाल तक सीमित नहीं है अब देश के कोने-कोने में सिंदूर खेला अब बड़े ही उत्साह के साथ खेला जाता है ।इस रस्म के पीछे मान्यता है कि सिंदूर खुशहाली, सौभाग्य और शक्ति का प्रतीक है। महिलाएँ एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर सुहाग की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन की मंगलकामना करती हैं। साथ ही यह माँ दुर्गा को अपने घर की बेटी मानकर उन्हें विदा करने की भावुक रस्म भी है।सिंदूर खेला के दौरान महिलाएँ पारंपरिक लाल पाड़ सफेद साड़ी पहनकर शामिल होती हैं। माँ दुर्गा की प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाने के बाद, चेहरे और माँग में सिंदूर लगाकर आनंद और उत्साह के साथ एक-दूसरे को गले लगाती हैं। पूरा माहौल ढोल-धाक और शंखध्वनि से गूंज उठता है।आज भी यह परंपरा सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं, बल्कि महिलाओं के बीच एकता, सौहार्द और शक्ति का प्रतीक बनकर जीवित है। यही कारण है कि दुर्गा पूजा का आख़िरी दिन सिंदूर खेला के बिना अधूरा माना जाता है।