दुमका के शिकारीपाड़ा प्रखंड में स्थित ऐतिहासिक मंदिरों का गांव मलूटी में दुर्गा पूजा मनाने की परंपरा भी खास है। यहां के ग्रामीण बांग्ला संस्कृति से दुर्गा पूजा करते हैं।मलूटी के सेवानिवृत्त शिक्षक कुमुदवरण राय बताते हैं कि मलूटी में देवी का आह्वान षष्ठी के दिन रविवार को बोधन पूजन से किया जाएगा। बोधन पूजन में यजमान पूरे विधि विधान से तीन कलश की स्थापना कर देवी का आह्वान करेंगे।महासप्तमी के दिन सोमवार को मलूटी में नव पत्रिका अनुष्ठान की परंपरा है। कहते हैं कि इसमें शक्ति के संग प्रकृति पूजन की परंपरा समावेशित है। मलूटी में नव पत्रिका पूजन अनुष्ठान कराने वाले पुरोहित प्रबोध भट्टाचार्य कहते हैं कि महा सप्तमी के दिन प्रात: काल के समय तय शुभ मुहूर्त पर नव पत्रिका पूजन अनुष्ठान की शुरुआत होगी।इसमें नौ तरह की पत्तियों से मिलाकर बनाए गए गुच्छे को तालाब में मंत्रोच्चार के साथ महा स्नान कराया जाएगा। इसके माध्यम से ही दुर्गा का आह्वान किया जाएगा है। नव पत्रिका में केला, दारु हल्दी, जयंती, बेलपत्र, अनार, अशोक, धान व अमलतास की पत्तियों का गुच्छ बनाया जाता है।इन्हीं नौ पत्तियों को मां दुर्गा का स्वरूप मानकर इसे दुर्गा मंडा में पूरे विधि-विधान से स्थापित किया जाता है। यहां मंडपों में दुर्गा की प्रतिमा के बजाए यही नव पत्रिका की ही पूजा-अर्चना होती है।पारंपरिक तरीके से किया जाता है नव पत्रिका पूजनमलूटी में नव पत्रिका पूजन अनुष्ठान पारंपरिक तरीके से किया जाता है। महासप्तमी के दिन सोमवार को राजाड़ बाड़ी के यजमान तुषार वरण राय, कुमुद वरण राय समेत कई श्रद्धालु अल सुबह ढोल-ढाक के साथ चतुर डोला यानी की डोली को कांधे पर लेकर तालाब जाएंगे।यहां इन्हें पुरोहित प्रबोध भट्टाचार्य मंत्रोच्चार के बीच नव पत्रिका महा स्नान कराने की परंपरा का निर्वहन कराएंगे। इसके उपरांत नव पत्रिका को डोली में रखकर उसे दुर्गा मंडा में लाकर स्थापित किया जाएगा। इस दौरान माता स्वरूप नव पत्रिका को फल, फूल, पुष्प, नारियल, खीर, पूड़ी व कई तरह के मिष्ठान प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाएगा।परंपरा के मुताबिक, पाठा की बलि भी दी जाएगी। इससे पूर्व ये लोग रविवार को विधि-विधान से षष्ठी पूजन कर तीन कलश की स्थापना कर इसके माध्यम से देवी का आह्वान करेंगे। कुमुद वरण राय कहते हैं कि मलूटी के विभिन्न हिस्सों में आठ स्थलों पर दुर्गा पूजा की जाती है।इसमें छह दुर्गा मंडों में दुर्गा की प्रतिमा के बजाए नव पत्रिका की पूजा-अर्चना की परंपरा कायम है, जबकि बदलते समय के साथ अब गांव में दो जगहों पर पंडाल बनाकर सार्वजनिक दुर्गा मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है।